भयानक दांत होने के बाद भी मगरमच्छ क्यों नहीं चबाता अपना शिकार ? दिलचस्प है वजह

Do You Know Why Crocodiles Swallow Prey : मगरमच्छ के दांत देखकर ही इंसान डर जाता है लेकिन दिलचस्प बात ये है कि वो अपने इन दांतों से अपने शिकार को कभी चबाकर नहीं खाता बल्कि सीधा निगल जाता है. आखिर ऐसा क्यों करता है मगरमच्छ ?


Crocodiles Do Not Eat Food : पानी में रहने वाला सबसे खतरनाक शिकारी है – मगरमच्छ. ये अपने शिकार को देखते ही इतनी तेज़ी से उसे लपक लेता है कि ज्यादातर वक्त उसका बचना नामुमकिन हो जाता है. अपने नुकीले दांतों से मगरमच्छ अपना शिकार दबोचता ज़रूर है लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि वो इसके बाद अपने दांत (Do You Know Why Crocodiles Swallow Prey) का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं करता.

मगरमच्छ अपने शिकार को दांतों और जबड़ों की सहायता से फंसाकर दबाता है और सीधा हलक से नीचे उतार लेता है. वो बाकी दांत वाले जानवरों की तरह उसे चबा-चबाकर नहीं खाता. सुनने में ये अजीब है लेकिन सच है कि मगरमच्छ के दांत उसको खाने में मदद नहीं देते. वो सिर्फ उसके जबड़े को इतना मजबूत बना देते हैं कि वहां फंसने के बाद शिकार का बच निकलना असंभव हो जाता है.

मगरमच्छ क्यों नहीं चबाता शिकार ?
दरअसल इस भयानक जानवर के मुंह में दांत तो होते हैं लेकिन उनकी संरचना ऐसी होती है कि वे शिकार को दबोच तो सकते हैं लेकिन चबाकर खा नहीं सकते. यही वजह है कि वे शिकार को दबाने के बाद सीधा मुंह में निगल जाते हैं. आपको ये जानकर भी हैरानी होगी कि मगरमच्छ के चार पेट होते हैं, जहां से शिकारको तोड़-मरोड़कर पहुंचाता है. मगरमच्छ के पेट में दूसरे जानवरों से कहीं ज्यादा गैस्ट्रिक एसिड होता है, जो खाने को पचाता है. मियामी साइंस म्यूज़ियम के एक्सपर्ट्स के मुताबिक ऑस्ट्रिच की तरह मगरमच्छ भी छोटे-छोटे कंकड़-पत्थर खाता है, ताकि ये पेट में खाने को ग्राइंड कर सकें.

एक बार शिकार के बाद शांत रहता है जीव
विशेषज्ञ बताते हैं कि मगरमच्छ अगर कोई बड़ा शिकार कर लेता है, तो उसे अगले कुछ दिन तक कुछ भी खाने की ज़रूरत नहीं पड़ती क्योंकि ये भोजन उसके पेट में धीरे-धीरे 10 दिन तक पचता है और वो शांत बैठा रहता है. मादा मगरमच्छ एक बार में 12-48 अंडे देती है, जिन्हें हैच करने के लिए उन्हें 55-100 दिन का वक्त लगता है. वे पैदा होते ही 7-10 इंच लंबे होते हैं लेकिन इन्हें बड़े होने में 4-15 साल का वक्त लग जाता है. इनकी ज़िंदगी इनकी प्रजाति पर निर्भर करती है. कुछ मगर 40 तो कुछ 80 साल तक भी ज़िंदा रह सकते हैं.

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